स्वच्छता प्रबंधन

  • जल निकासी व्यवस्था
  • स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए वर्षा और भूमिगत जल की उचित निकासी प्रदान की जानी चाहिए।

  • पानी की उपलब्धता
  • धुलाई, चारे की खेती, दूध और उपोत्पादों के प्रसंस्करण और पीने के लिए बहुत सारे पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए एक जल स्रोत जो लगातार पानी उपलब्ध कराता है, आवश्यक है।

  • बिजली
  • यह खेत में उपयोग की जाने वाली विभिन्न मशीनों के संचालन के लिए आवश्यक है और जानवरों के लिए प्रकाश स्रोत है।

  • पवन और सौर विकिरण से सुरक्षा
  • यदि खेत की इमारत खुले या खुले क्षेत्र में हो, तो खेत में हवा के झोंकों से ऊँचे-ऊँचे तेजी से उगने वाले पेड़ों को भवन के पास ही उगाना चाहिए। इससे हवा की गति और सौर विकिरण में कमी आएगी।

  • शोर और अन्य गड़बड़ी से सुरक्षा
  • फार्म स्थल ध्वनि उत्पन्न करने वाले कारखाने/रासायनिक उद्योग, सीवेज निपटान क्षेत्र से दूर होना चाहिए। गैसीय या तरल के रूप में औद्योगिक अपशिष्ट आसपास के संसाधनों को प्रदूषित कर सकते हैं। शोर भी पशु उत्पादन को प्रभावित करने के लिए पाया जाता है। इसलिए खेत शहर से दूर होना चाहिए।

  • दुधारू पशुओं के बाहरी परजीवी तथा उनकी रोकथाम
  • पशुओं में पाये जाने वाल बाहृा परजीवी अर्थ – व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बाहृा परजीवी शरीर के बाहर बालों में व त्वचा पर निवास करते हैं तथा बाहर से जानवरों को क्षति पहुँचाते हैं। बाहरी परजीवी पशुओं के शरीर पर या तो स्थाई रूप से लगे रहते हैं या समय समय पर पोषण प्राप्त करने हेतु शरीर पर लगते हैं। बाहरी परजीवीयों के नियंत्रण से पशु का वजन बढ़ता है, पशु उत्पादनों में वृद्धि होती है तथा पशु अधिक आकर्षक दिखते हैं।

  • कब बढ़ते हैं बाहरी परजीवी ?
  • वर्षाऋतु , अस्वच्छता , सूर्य का प्रकाश व हवा की कमी होने की दशा में इनका प्रकोप अधिक हो जाता है। बाहरी पर्जीवों के उदाहरण: मक्खी , मच्छर , किलनी , जूऐं , पिस्सू एंव माइट्स

  • कहाँ पाए जाते हैं बाहरी परजीवी ?
  • सामान्यता बाहरी परजीवी जानवरों के पेट , कानों की निचली तरफ, पूंछ व योनि तथा जांघ के अंदर की सतह एंव अयन/अंडकोष के चारों तरफ पाये जाते हैं।

  • बाहरी पर्जीवों के नुकसान
  • इनके काटने से जावरों की त्वचा शुष्क पड़ जाती हैं, बाल गिरने लगते हैं, रक्त की कमी हो जाती है, वह खाना पीना छोड़ देते हैं एंव उनका उत्पादन घट जाता है।


    बचाव

  • खेतों की जुताई करके।
  • पाश्चर को जलाकर जिससे उसमें मौजूद किलनी की अवस्था नष्ट हो जाएं।
  • हाइमेनीपटेरन मक्खी के द्धारा अथवा चींटियों के द्धारा जैविक नियंत्रण करके।
  • टीकाकरण द्धारा।
  • कायिक नियंत्रण द्धारा जिसमें बाहरी परिजिवीयों को दूर भगाने वाले रसायन का प्रयोग करते हैं।

  • उपचार
  • बाहरी परजीवियों की उपस्थिति , संख्या एंव गंभीरता को ध्यान में रखकर पशुचिकित्सक की सलाह के उपरान्त निन्नलिखित दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है।

    साइपरमैथ्रिन / डेल्टामैथ्रिन- 1-2 मि ली दवा , 1 लीटर पानी में घोलकर नहलायें तथा 5 मि ली दवा 1 लीटर पानी में घोलकर बाड़े में छिड़काव करें।

    आइवरमेक्टिन / डोरामेक्टिन- इंजेक्शन- 1ml प्रति 50 किग्रा भार पर सुई द्धारा त्वचा के नीचे, टेबलेट- 1 टेबलेट प्रति 50 किग्रा भार पर

    बैटिकाल (पोर – आन)- 1 मि ली दवा प्रति 10 किग्रा भार पर सिर से पूंछ तक बूँद बूँद कर रीढ़ की हड़डी पर टपकाना

    अमिटराज- पानी में मिश्रित कर त्वचा पर लगा कर नियंत्रण करते हैं


    उपचार के दौरान सावधानियाँ

  • जानवरों को दवाई के घोल से नहलाने से पहले पानी पिला लेना चाहिए तथा मुसीका लगा लेना चाहिए।
  • समूह के सभी जानवरों को एक साथ नहलाना चाहिए।
  • नहलाने के साथ ही जानवरों के बाड़े में भी स्प्रे करना चाहिए ताकि बाहरी परजीवियों का सम्पूर्ण नियंत्रण हो सके।